Tuesday 14 August 2012

देशगान

सकल वसुधा का है शिर मौर ,हमारा प्यारा भारत देश ।
जगत के शैल वर्ग में श्रेष्ठ तुहिनगिरि प्रहरी तुल्य विराट ।
अड़ा है अपना ताने वक्ष खड़ा है उन्नत किये ललाट । ।
यहां का तृण तृण है रमणीक,यहां का कण कण है अभिराम ।
इसे है कोटि नमन नतशीश इसे है बारम्बार प्रणाम ।।
धन्य रामेश्वर बदरीधाम स्वर्ग जिनके सम्मुख नि
:सार ।
धन्य गंगा की पावन धार मृतक तक का करती उद्धार ।।
महा महिमा गुण अकथ अशेष ,हमारा प्यारा भारत देश ।।1।।


यहीं पर हुए उशीनर राज हुए हैं यहीं दधीच समान ।
दिया परहित में अपना मांस किया निज अस्थि जाल भी दान । ।
अहा
! गौतम गांधी की गाथ न कोई कहीं जिन्हें था त्याज्य ।
अहिंसा,सत्य,प्रेम के स्रोत लोक हित त्यागा तन साम्राज्य ।।
हुए हैं त्यागी यहां असंख्य कथा है जिनकी अपरम्पार ।
एक साधारण पशु के हेतु प्राण तक देने को तैयार ।।
हुए जग विदित दिलीप नरेश ,हमारा प्यारा भारत देश ।।2।।


कहानी बल पौरुष की
'शुक्ल' सदा है अमिट अपार अमन्द ।
हमारे रण कौशल का गान किया करते वृन्दारक वृन्द ।।
अभी है बात पड़ोसी पर था अत्याचार ।
चला था दमनचक्र इस भांति निठुरता कहती थी
'धिक्कार'।।
लुटा ललनावों का श्रृंगार किया तब हमने रण हुंकार ।।
बजी तबतो रणभेरी खूब हुई बैरी की भारी हार ।।
नहीं पर अहंकार है लेश ,हमारा प्यारा भारत देश ।।3।।


धन्य यह धरती परम पुनीत ,धन्य काशी,अजमेर,प्रयाग ।
यहीं पर हो अपना हर जन्म रहे इसकी रज से अनुराग ।।
धन्य भारत के श्रमिक, किसान,धन्य भारत के वीर जवान ।
धन्य ईश्वर अल्ला के नाम,धन्य हैं वेद, पुरान, कुरान ।।
हमें प्रिय है इसका जलवायु हमें इसकी मिट्टी से प्यार ।
न केवल हमी इसे नतमाथ इसे तो झुकता है संसार ।।
सुयश गाते हैं शारद शेष.हमारा प्यारा भारत देश ।।4।।
- रघोत्तम शुक्ल