रघोत्तम शुक्ल की कलम
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Monday, 28 April 2014
दुर्गा वंदना
लसत कमल दर एक एक कर मह खरग अपर कर चम चम चमकत।
हर पल भजत अमर वर अज हर जगत बदर सम रह करतल गत ।।
बसत सतत कन कन मह रन मह रहत अधम गन खल जन वध रत ।
मदन कदन मन हरन करत मम नमन चरन कमलन पर सत सत ।।
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