अष्टसिद्धियां
योग मार्ग में साधक का लक्ष्य ‘कैवल्य’ पद प्राप्त करना होता है। इस लक्ष्य को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब साधक सोपान सिद्धियों में सिद्धस्त हो। ये आठ सिद्धियां हैं- अणिमा अर्थात अणु के समान सूक्ष्म रूप धारण कर लेना, लघऍ मा अर्थात शरीर को हल्का कर लेना, महिमा- शरीर को विशाल कर लेना, गरिमा अर्थात शरीर को भारी कर लेना, प्राप्ति यानी संकल्पमात्र से इच्छित भौतिक पदार्थ की प्राप्ति कर लेना, प्राकाम्य अर्थात निर्बाध भौतिक पदार्थ विषय इच्छा की पूर्ति अनायास हो जाना, वशित्व- पांचभूतों और उनसे जनित पदार्थो का वश में हो जाना एवं ईशित्व अर्थात भूत और भौतिक पदार्थो को विभिन्न रूपों में उत्पन्न करने और उन प र शासन करने की क्षमता पा लेना। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पांचभूत हैं, जिनसे शरीर बना है। इनमें हर एक की पांच अवस्थायें होती हैं- स्थूल अर्थात जैसी वे इंद्रियगोचर हों, स्वरूप यानी उनके लक्षण से, जैसे जल का गीलापन, अग्नि की गर्मी, सूक्ष्म अर्थात उनका परिणाम या तन्मात्र जैसे पृथ्वी से गंध, जल से रस, आकाश से शब्द आदि, अन्वय यानी सभी भूतों की प्रकाश क्रिया और स्थिति के गुण उनकी अऍ ्वय अवस्था है। अर्थवत्व-भूत, पुरुष के भोग और अपवर्ग के प्रयोजन हैं- यह उनकी अर्थवत्व अवस्था है। जब समस्त भूतों की पांचों अवस्थाओं में योगी ‘संयम’ कर लेता है तो उसे ‘भूतजय’ प्राप्त हो जाती है। जब एक ‘ध्येय’ पदार्थ में धारणा, ध्यान और समाधि तीनों हो जाएं तो योग की तकनीकी शब्दावली में उसे ‘संयम’ कहते हैं। ध्याता, ध्यान और ध्येय एक हों। इन ‘समाधिजा’ सिद्धियों के अलावा चार अन्य प्रक ार से भी सिद्धियां मिल सकती हैं-पूर्वजन्म की सिद्धि के आधार पर प्रारब्धानुसार नए जन्म में, औषधि सेवन से, मंत्र जप से तथा तप से। यदि सिद्धियों में रागात्मिका वृत्ति हुई और निजहित में प्रयोग हुआ तो ये मुमुक्ष के लिए बाधा हैं। लोक हित में ही इनका प्रयोग होना चाहिए, अन्यथा साधक इनसे विरक्त ही रहें।
- रघोत्तम शुक्ल
(यह आलेख दैनिक जागरण समाचार पत्र में दिनांक 19जुलाई 2012 को प्रकाशित हुआ । ) http://www.jagrancom.com/story.aspx?edorsup=Sup&queryed=187&querypage=1&boxid=104863920&id=1872&ed_date=04/02/2012
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