Sunday, 25 March 2012

कृष्ण की कर्मभूमि में अकर्म को समर्थन

द्वापर युग के अन्त में भगवान विष्णु अपनी सम्पूर्ण कलावों सहित पृथ्वी पर श्रीकृष्ण के रूप में पधारे और उन्होंने भारत के उत्तर प्रदेश को अपनी जन्म और कर्मभूमि के लिए चुना । विश्व प्रसिद्ध गीता और उसके कर्मयोग के उपदेश उन्हीं के हैं , जो विषाद-ग्रस्त,कर्म विमुख हो रहे ,जीव राशि के प्रतीक अर्जुन को उन्होंने दिये तथा संसार में संघर्ष करते रहने हेतु प्रेरित कर प्रवृत्त किया । वे ब्रह्म स्वरूप मान्य हुए और उनकी जन्म,कर्म स्थली तीर्थ बन गई । अर्जुन द्वार वे हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति !’कहकर पुकारे गये ।

                               हाल ही में इसी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए, जिनमें एक यादव की ही पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और उनके पुत्र ने सत्ता संभाल ली । चुनाव में मतदान जब आशातीत हो रहा था ,तब स्थिति अस्पष्ट थी और ऐसा भी सोच बन रहा था कि जनता में लोकतंत्र के प्रति आस्था बढ़ी है, पर अब यह स्पष्ट हो रहा है कि यह मतदान की बहुलता यादवपार्टी द्वारा मुफ्त बेरोजगारी भत्ता,लैपटॉप,टैबलेट प्रदान करने तथा अन्य प्रकार की अनुग्रह धनराशियां देने के पक्ष में था । प्रदेशवासी , खासकर युवा अकर्मशील रहकर धन एवं सामग्री पाने का समर्थन कर रहे थे। कितना फर्क है अलग-अलग युगों के अलग-अलग यादवोंमें । एक ने कर्म में प्रवृत किया तो दूसरे ने कर्म से विरत ।

                        द्वापर युगीन यादव का जन्म तो जेल में हुआ किन्तु कर्म वंदनीय थे । कलियुगी यादवपर अनेक आपराधिक मामले थे और प्रचलित हैं । सीबीआई जांच भी है । जीतने वाले 224 नियामकों,जिन्हें विधायक कहेंगे,111 पर आपराधिक मामले हैं । जेल का मंत्री जेल जाने का अनुभव रखता है । आगे भगवान मालिक है । हां ! मैं प्रदेश के युवावों को ललकारता हूं कि वे कर्म के अधिकार पर जोर दें,रोजगार पाने का हठ करें,स्वाभिमान जिन्दा रखें । खैरात पाने के लिए लाइन न लगावें ।  

Saturday, 17 March 2012

ऊर्जा: कुण्डलिनी रहस्य


साधक के लिए कुण्डलिनी और उसका जागरण सदा से जिज्ञासा का विषय रहा है । यह
'शक्ति' और सर्वोच्च वैश्विक ऊर्जा है ,जिसे 'शिवसूत्र' में परब्रह्म की 'इच्छा
शक्ति उमा कुमारी ' कहा गया है । जापान में इसे 'की' चीन में 'ची'तथा इसाई धर्म
ग्रन्थों में 'होली स्पिरिट' कहा गया है । शरीर में 72000 नाड़ियां होती हैं
। इनमें इड़ा , पिंगला और सुषुम्ना, प्रधान हैं । ये मेरुदंड या रीढ़ के बीच
में स्थित होकर संपूर्ण नाड़ी तंत्र एवं तन को नियंत्रित करती हैं । इसी के
नीचे 'मूलाधार चक्र' में तीन इंच लंबी कुण्डलिनी चक्र रूप अर्थात कुण्डली मारे
स्थित रहती है । सुषुम्ना के अंदर भी 'चित्रिणी' नामक एक नाड़ी है । कुण्डलिनी
जागृत होने पर इसी चित्रिणी के अंदर से सीधी होकर ऊपर को जाकर 'सहस्रार या
शिवस्थान'पर पहुंचती है । इन सबकी स्थिति इतनी सूक्ष्म है कि विज्ञान या
चिकित्सा शास्त्र से दर्शनीय या ग्रहणीय नहीं है । साढ़े तीन चक्र मारे बैठी
कुण्डलिनी जागरण के विविध उपाय हैं - यथा उत्कट भक्ति , यौगिक क्रियाएं , मंत्रजप ,
गुरु द्वारा शक्तिपात और कभी-कभी पूर्व जन्मों की संसिद्धि के आधार पर
'अकस्मात' । जागृत होने पर तत्काल पूर्व कर्मों के प्रभाव बाहर आ जाते हैं तथा
व्यक्ति विक्षिप्तों जैसा आचरण करने लगता है । योग्य गुरू की सहायता बिना
कुण्डलिनी जागरण खतरनाक सिद्ध हो सकता है । प्रारंभ में तन्द्रा सी अनुभूत होती
है और नदी,देवता,साधु,संत,अंत:दृश्य में आते हैं । वह स्वप्नावस्था नहीं होती
है । वह जागृत होकर उपरिगामी होती है और सुषु्म्ना के छहों चक्रों -
मूलाधार,स्वाधिष्मान, मणिपूर ,अनाहत ,विशुद्ध और आज्ञा का भेदन करती है । आज्ञा
'चक्र'दोनो भौहों के बीच का स्थान है जिसे 'त्रिपुटी' भी कहते हैं । तदनन्तर
'नाद'और'बिन्दु'उसका गन्तव्य है । बिन्दु सहस्त्रों ग्रन्थियों वाला सहस्त्रार
है जहां त्रिकोण में 'परमशिव'विराजमान हैं । वहां कुण्डलिनी के पहुंचने पर
सहस्त्रों सूर्यों का शीतल नीला प्रकाश दर्शित होता है । साधक परमानन्द में डूब
जाता है । गूंगे का गुड़ है । कबीर कहते हैं - 'उनमनि चढ़ा मगन रस पीवै'।
'हंस', 'सोहं' , 'हूं क्षूं' के उच्चारण तथा खड़े होकर अपनी एड़ियों से मूलाधार
पर हल्के प्रहार भी कुण्डलिनी जागरण में सहायक होते हैं । मानव मात्र के लिए
किसी भी लौकिक सुख से ऊपर ब्रह्मानंद होता है ,जो उसे कुण्डलिनी जागरण से
प्राप्त होता है, तब वो पूर्णकाम और धन्य हो जाता है । ऐसा आत्मज्ञानी व्यक्ति
जीवन मुक्त होकर ब्रह्म से तादात्म्य करता है और वसंत ऋतु के समान लोकहित करता
हुआ दूसरों को भी तारता रहता है ।

(यह आलेख दैनिक जागरण में दिनांक 17 मार्च को प्रकाशित हुआ ।)