द्वापर युग के अन्त में भगवान विष्णु अपनी सम्पूर्ण कलावों सहित पृथ्वी पर श्रीकृष्ण के रूप में पधारे और उन्होंने भारत के उत्तर प्रदेश को अपनी जन्म और कर्मभूमि के लिए चुना । विश्व प्रसिद्ध ‘गीता’ और उसके ’कर्मयोग’ के उपदेश उन्हीं के हैं , जो विषाद-ग्रस्त,कर्म विमुख हो रहे ,जीव राशि के प्रतीक अर्जुन को उन्होंने दिये तथा संसार में संघर्ष करते रहने हेतु प्रेरित कर प्रवृत्त किया । वे ब्रह्म स्वरूप मान्य हुए और उनकी जन्म,कर्म स्थली ‘तीर्थ’ बन गई । अर्जुन द्वार वे ‘हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति !’कहकर पुकारे गये ।
हाल ही में इसी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए, जिनमें एक ‘यादव’ की ही पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और उनके पुत्र ने सत्ता संभाल ली । चुनाव में मतदान जब आशातीत हो रहा था ,तब स्थिति अस्पष्ट थी और ऐसा भी सोच बन रहा था कि जनता में लोकतंत्र के प्रति आस्था बढ़ी है, पर अब यह स्पष्ट हो रहा है कि यह मतदान की बहुलता ‘यादव’पार्टी द्वारा मुफ्त बेरोजगारी भत्ता,लैपटॉप,टैबलेट प्रदान करने तथा अन्य प्रकार की अनुग्रह धनराशियां देने के पक्ष में था । प्रदेशवासी , खासकर युवा अकर्मशील रहकर धन एवं सामग्री पाने का समर्थन कर रहे थे। कितना फर्क है अलग-अलग युगों के अलग-अलग ‘यादवों’ में । एक ने कर्म में प्रवृत किया तो दूसरे ने कर्म से विरत ।
द्वापर युगीन ‘यादव’ का जन्म तो जेल में हुआ किन्तु कर्म वंदनीय थे । कलियुगी ‘यादव’पर अनेक आपराधिक मामले थे और प्रचलित हैं । सीबीआई जांच भी है । जीतने वाले 224 नियामकों,जिन्हें विधायक कहेंगे,111 पर आपराधिक मामले हैं । जेल का मंत्री जेल जाने का अनुभव रखता है । आगे भगवान मालिक है । हां ! मैं प्रदेश के युवावों को ललकारता हूं कि वे कर्म के अधिकार पर जोर दें,रोजगार पाने का हठ करें,स्वाभिमान जिन्दा रखें । ‘खैरात’ पाने के लिए लाइन न लगावें ।
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