Monday 7 November 2016

-------------तीन तलाक़---कुरान और कानून--------

इन दिनों मुस्लिम महिलावों के तलाक़ सम्बन्धी प्रावधानों को लेकर बहस गर्म है।मामला सुप्रीम कोर्ट में है और केन्द्र सरकार ने वहाॅ अपना रुख साफ कर दिया है कि मात्र तीन बार तलाक़ कह देने से मुस्लिम महिला का विवाह विच्छेद हो जाना अन्याय है।इसे लेकर मुस्लिम संगठन और नारी शोषक पुरुष वर्ग हाय तोबा मचा रहा है।वे चाहते हैं कि नारी निरीह और दबी कुचली सिर्फ भोग करने की वस्तु बनी रहे।
          मैं यहाॅ कहना चाहूॅगा कि प्रथम तो कुरान शरीफ़ में यह व्यवस्था है ही नहीं कि तीन बार लगातार 'तलाक़'कहकर विवाह विच्छेद हो जाता है।कुरान के सूरा 'बकर'में व्यवस्था है कि एक बार तलाक कहकर स्त्री के अगले "हैज़"(मासिक धर्म")का इन्तज़ार किया जाय और इस बीच दोनों में शारीरिक सम्बन्ध न स्थापित हों;फिर इसी तरह अगला मासिक धर्म और फिर तीसरा;और हर बार तलाक़ कहा जाय व रति क्रीड़ा न हो।तब तलाक़ पूरा होता है किन्तु पुरुषों ने इसकी मनमानी व्याख्या की और लगातार तीन बार तलाक़ कहकर और SMS व ई मेल आदि भेजकर भी तलाक़ सही ठहराये गये।
          दूसरी बात यह कि धर्म ग्रन्थों को यदि कानून माना गया तो बड़े अन्याय हो जायेंगे।कुरान में बदचलनी करने पर बीबियों को मारने पीटने की व्यवस्था है और  सूरा निसा में उल्लेख है कि उन्हें कमरे में बन्द कर दो,जब तक वे मर न जायॅ(पारा 4/आयत-15)।कुरान काफिर को बेरहमी से कत्ल करने का निर्देश देती है और काफ़िर वह है जो इस्लाम धर्म नहीं मानता।तब तो इसे कानून मानने पर सारे हिन्दू,सिख ,ईसाइयों को कत्ल करने का मुसलमानों को अधिकार मिल जायगा।क्या यह सम्भव है।
         मुस्लिम बन्धु देश की मुख्य धारा में आयें।उनका स्वागत है।

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